मुहम्मद के महान पूर्वज हज़रत इब्राहीम की कहानी | हज़रत मुहम्मद की जीवनी

इब्राहीम अलैहिस्सलाम का मुल्क और नस्ल 

आदम (अलै०) की औलाद मे मशहूर सन्देष्टा (पैगम्बर) हज़रत नूह (अलै०) हुए हैं और हज़रत नूह (अलै०) की औलाद में हज़रत इब्राहीम (अलै०) सबसे बड़े पैगम्बर हुए ।

यह ईराक देश में पैदा हुए, वहीं बढ़े और जवान हुए ।

उस वक्‍त ईराक के लोग चाँद, सूरज और सितारों की पूजा करते थे ।

सोचो हमारा भगवान कौन हो सकता है?

हज़रत इब्राहीम (अलै०) ने जब यह देखा तो दिल ही दिल में यह सोचा कि क्या यह सितारे मेरा भगवान हो सकते हैं?

लेकिन जैसे ही रात खत्म होकर सुबह का तड़का होने लगा, सितारे झिलमिलाने लगे और जब सूरज निकला तो वह सितारे बिल्कुल आखों से ओझल हो गये यह देखकर वह पुकार उठे ऐसी खत्म होने वाली चीज़ों से तो मैं दिल नहीं लगाता ।

फिर जब रात आई और चाँद पर नज़र पड़ी तो ख्याल किया कि शायद उसकी रोशनी में अल्लाह की शक्ल हो लेकिन जब वह भी डूब गया तो बोल उठे कि अगर मेरे पालनहार ने मुझे राह न दिखाई तो मुझे सच्चाई का रास्ता कभी न मिल सकेगा ।

अब खयाल हुआ कि अच्छा सूरज की रोशनी तो सबसे बढ़कर है क्या यह हमारा देवता नहीं हो सकता?

लेकिन जब शाम के अन्धेरे ने जब उस बड़ी रोशनी को भी बुझा दिया तब उनके दिल से आवाज़ आई कि मेरे पालनहार की रोशनी तो वह रोशनी है जिसका अन्धेरा नहीं, मैं उसी अल्लाह को मानता हूँ जिसने आसमान व ज़मीन और उसमें रहने वाली हर चीज़ को पैदा किया ।

फिर इब्राहीम ने लोगों में पुकार कर कहा कि मैं तुम्हारे मुश्रिकाना दीन (एक अल्लाह को छोड़कर किसी और की पूजा करना) को छोड़ता हूँ और हर तरफ से मुड़ कर उस एक हकीकी (वास्तविक) पालनहार के लिए सर झुकाता हूँ ।

हज़रत इब्राहीम अल्लाह के महान पैग़म्बर हुए 

अल्लाह ने उनको पैगम्बर बनाया, और आसमान व ज़मीन के राज़ उनके सामने खोल दिये और दुनिया मे तौहीद (ऐकेश्वरवाद) का पैग़ाम सुनाने का उन्हें हुक्म (आज्ञा) दिया ।

फिर जब उन्होंने ईराक के बादशाह “नमरुद” और उसके दरबारियों को अल्लाह का यह पैगाम सुनाया तो  उनके कानों लिए यह बिल्कुल नई बात थी ।

उन्होंने हजरत इब्राहीम (अलै०) को डराया, धमकाया, मगर वह अपनी बात पर जमे रहे और एक दिन मौका पाकर उन के बुत खाने जाकर उनके पत्थर की मूर्तियों को तोड़ फोड़ कर रख दिया ।

यह देखकर उनको बादशाह ने यह सज़ा दीं, कि उन्हे आग के अलाव मे डालकर जला दिया जाए ।

यह इम्तिहान का मौका था मगर उनके अल्लाह पर यक़ीन और सब्र का वही हाल रहा ।

इधर उनका आग में पड़ना था कि अल्लाह के आदेश पर आग बुझकर उनकी जान की सलामती का सामान बन गई ।

अब हज़रत इब्राहीम (अलै०) यहाँ से मिस्र व सीरिया के देशों की तरफ चले और वहाँ के बादशाहों को तौहीद (ऐकेश्वरवाद) का उपदेश सुनाया और जब कहीं यह आवाज़ न सुनी गई तो अरब के सूबे (प्रदेश) हिजाज़ में चले आये ।

अल्लाह ने हज़रत इब्राहीम (अलै०) को दो बेटे दिये जिसमे बड़े का नाम इस्माईल और छोटे का नाम इस्हाक रखा ।

आपने इस्हाक को सीरिया के मुल्क में और इस्माईल को हिजाज़ में आबाद किया ।

आगे पढ़ें
पिछला पढ़ें

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version