मक्का और काबा का इतिहास | काबा क्या है | हज़रत मुहम्मद साहब की जीवनी

हम अब तक यह पढ़ चुके हैं कि अल्लाह ने हज़रत इब्राहीम (अलै०) को दो बेटे दिये बड़े का नाम इस्माईल और छोटे का नाम इस्हाक रखा। आपने इस्हाक को सीरिया के मुल्क में और इस्माईल को हिजाज़ में आबाद किया।

काबा का इतिहास

हिजाज़ का देश इन दिनों आबाद न था, मगर सीरिया और यमन के देश बहुत आबाद थे। सीरिया से यमन को, और यमन से सीरिया को, जो व्यापारी और सौदागर आते जाते थे वह हिजाज़ ही के रास्तों से आते जाते थे। इसलिए हिजाज़ में आने-जाने वालों की लाइन लगी रहती थी।

हजरत इब्राहीम (अलै०) को अल्लाह का हुक्म हुआ कि उसी हिजाज़ की ज़मीन में एक जगह पर हमारी इबादत करने और नमाज़ पढ़ने के लिए एक घर बनाओ।

हजरत इब्राहीम और उनके बेटे इस्माईल ने मिलकर खुदा के इस घर को बना कर खड़ा किया, घर का नाम काबा या बैतुल्लाह (अल्लाह का घर) रखा।

मक्का में हज़रत इस्माईल का खानदान

खुदा ने अपने इस घर (काबा) को इज्ज़त व बड़ाई दी और हज़रत इब्राहीम (अलै०) को हुक्म दिया, कि उसके घर की देख-रेख के लिए अपने लड़के इस्माईल को इस जगह पर आबाद करो | हज़रत इब्राहीम (अलै०) ने ऐसा ही किया हजरत इस्माईल की औलाद भी यहीं रहने लगी और इस जगह का नाम मक्का रखा गया।

हज़रत इस्माईल का खानदान उस शहर में जिस का नाम मक्का पड़ा था फलता फूलता रहा और अल्लाह का पैगाम (सन्देश) बन्दों को सुनाता और काबा मे अल्लाह ही की ईबादत करता रहा।

काबा में गुमराही 

सैकड़ों साल गुजरने के बाद यह लोग दूसरे कौमों के देखा-देखी एक खुदा को छोड़ कर मिट्टी और पत्थर की अजीब-अजीब शक्लों को बनाने लगे और कहने लगे कि यही हमारे अल्लाह हैं।

मिट्टी और पत्थर की जिन अजीब-अजीब शक्लों को वह खुदा समझ कर पूजते थे उनको बुत कहते थे। बुतों को पूजना और उन्हें अल्लाह समझना, अल्लाह के यहाँ सबसे बुरा काम है, और जो लोग अल्लाह को छोड़ कर दूसरों को पूजते हैं उन्हें काफिर कहते हैं।

मक्का में हज 

इतने दिनों में हज़रत इस्माईल (अलै०) के घराने के आदमी बहुत से खानदानों और कबीलों में बैंट गये थे। उनमें मशहूर कबीले का नाम “कुरैश” था। यह खास मक्का ही में आबाद और काबा के देख-रेख करने वाले (प्रबन्धक) थे।

दूर-दूर से काबा के हज के लिए जो लोग आते थे उनको हाजी कहते हैं।

हाजियों को ठहराना, खाना-खिलाना, पानी-पिलाना और काबा शरीफ के दूसरे कामों की देखभाल, उसी कबीले के हाथों मे थी। इसलिए यह कबीला सारे अरब में इज्ज़त की निगाह से देखा जाता था। इस कबीले के ज्यादातर लोग व्यापार और सौदागरी का पेशा करते थे।

हज़रत मुहम्मद का खानदान – बनी हाशिम

कुरैश के कबीले में भी कई बड़े-बड़े खानदान थे। उनमें से एक बनी हाशिम थे। यह हाशिम की औलाद थे, हाशिम इस खानदान के बड़े नामी आदमी थे। हाजियों को दिल खोल कर खाना खिलाते थे और पीने के लिए चमड़े के होज़ों मे पानी भरवाते थे। यह एक तरह से मक्का के सरदार थे क़ुरैश के लिए जो कि तिजारत व व्यापार से रोज़ी कमाते थे।

उन्होंने यह किया कि हबशा के बादशाह नज्जाशी और मिस्र और सीरिया के बादशाह कैसर से फर्मान (आज्ञापत्र) लिखवाया कि उनके देशों में कुरैश के सौदागर बिना किसी  रोक-टोक आ जा सकें।

उन्होंने फिर अरब के बहुत से कबीलों में घूम-फिर कर उनसे यह अहद (वचन) लिया कि वह क़ुरैश के सौदागरों के काफिलों को नहीं लूटेंगे, उसके बदले में कुरैश के व्यापारी यह करेंगे कि हर कबीले की ज़रूरत की चीज़ें लेकर खुद उनके पास जाएगे।

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