कॉफ़ी की खोज मुसलमानों की देन है | दुनिया में मुसलमानों का योगदान

कॉफी की खोज 1200 साल से भी अधिक पहले खालिद नाम के एक मुसलमान ने की थी जो इथियोपिया की पहाड़ियों और ढलानों पर अपनी बकरियां चराने जाता था । खालिद ने देखा कि एक विशेष प्रकार के बेर खाने के बाद उसकी बकरियाँ अधिक जीवंत और ऊर्जावान हो जाती थी । अपने कच्चे रूप में खाने के बजाय उन्हें उबाल कर क़हवा बना लिया गया ।

मुस्लिम दुनिया में कॉफी की लोकप्रियता

कॉफी की खोज से पहले यमन के मेहनती लोग और सूफी संत जो देर रात तक अल्लाह की इबादत के लिए जागते रहते थे, वह क़हवा पिया करते थे।

कॉफी की लोकप्रियता यात्रियों, तीर्थयात्रियों और व्यापारियों के माध्यम से शेष मुस्लिम दुनिया में फैल गई और 15 वीं शताब्दी के अंत में और 16 वीं शताब्दी में काहिरा में मक्का और तुर्की तक पहुंच गई।

कॉफी का यूरोप में आना

यूरोप में पहला कॉफी हाउस 1645 में वेनिस में शुरू हुआ, जब कॉफी को उत्तरी अफ्रीका और मिस्र के साथ व्यापार के माध्यम से यूरोप लाया गया।

ब्रिटेन में कॉफी सन 1650 में पसका रोजे नाम के एक तुर्की व्यापारी द्वारा लाई गई थी और लंदन के लोम्बार्ड स्ट्रीट के जॉर्ज यार्ड में एक कॉफी हाउस में बेची जाने लगी । इसके 8 साल बाद कॉर्नहिल में ‘सुल्तानेस  हेड’ नाम का एक कैफे खोला गया।

लॉयड्स कॉफी हाउस 17 वीं शताब्दी के अंत में लंदन में स्थापित किया गया था और व्यापारियों और जहाज-मालिकों के लिए एक बैठक स्थल था। बाद में इस कॉफी हाउस ने खुद को एक बीमा कंपनी में बदल लिया था ।

17 वीं शताब्दी के अंत तक लंदन में पहले से ही लगभग 500 कॉफी हाउस थे, और पूरे इंग्लैंड में लगभग 3000 कॉफ़ी हाउस थे।

इन कॉफी हाउसों को पेनी विश्वविद्यालयों’ के नाम से भी जाना जाता था क्योंकि इन कॉफ़ी हाउस में केवल एक पेनी की एक कप कॉफी खरीदकर वहां के महान बुद्धिजीवियों के साथ बात की जा सकती थी जो की वहां बैठा करते थे ।

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