बाबरी मस्जिद का इतिहास 1528 से 2020 तक | Babri Masjid ka Itihaas

अल्लाह तआला क़ुरान में कहते हैं: 

और मस्जिदें अल्लाह के लिए हैं, लिहाज़ा उन में अल्लाह के साथ किसी और को न पुकारो ! [क़ुरान 72:18]

बाबरी मस्जिद – निर्माण से झगड़े तक का इतिहास

  • बाबरी मस्जिद मुग़ल बादशाह ज़हीरुददीन बाबर के वज़ीर मीर बाक़ी ने 1528 ई में अयोध्या के एक टीले पर बनाई थी | यह बात बाबरी मस्जिद के बाहरी दरवाज़े पर लिखी हुई थी |
  • 1528 से लेकर 1557 तक मुस्लिम हुकूमत रही है और हुकूमत की तरफ से बाक़ायदा यहाँ इमाम (नमाज़ पढ़ाने वाले), मुअज़्ज़िन (अज़ान देने वाले) और मस्जिद की सेवा करने वाले लोग अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करते रहे हैं |
  • 1528 से लेकर 1557 तक बाबरी मस्जिद में लगातार नमाज़ होती रही है |
  • 1557 के बाद अंग्रेज़ों की तरफ से ये झूटा प्रचार किया गया की बाबरी मस्जिद मन्दिर तोड़कर बनाई गई थी और यही बात आगे बढ़कर “राम जन्म भूमि” और “राम जन्म स्थान” तक पहुँच गई |

बाबरी मस्जिद उन्नीसवीं सदी में  

  • 1883 में हिन्दुओं ने बाबरी मस्जिद के बाहरी सहन में पूर्व की तरफ “राम चबूतरे” की दावेदारी करते हुए पूजापाठ शुरू कर दिया | इसी के साथ साथ मस्जिद के उत्तर में “सीता की रसोई” का भी दावा कर दिया गया |
  • 1884 में हिन्दुओं ने राम चबूतरे पर मंदिर बनाने की याचिका दायर की थी जिसे उस वक़्त के मजिस्ट्रेट ने रदद् कर दिया था |

बाबरी मस्जिद – बीसवीं सदी में 

  • 1857 से 1949 तक मुसलमान बाबरी मस्जिद में नमाज़ पढ़ते रहे हैं और इस बात को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है |
  • 1949 में 22, 23 दिसंबर की रात को कुछ अपराधिक तत्वों ने मस्जिद के मिम्बर पर मूर्तियाँ लाकर रख दीं और ये अफवाह फैलाई की “राम लला” प्रकट हुए हैं |

बाबरी मस्जिद में पूजापाठ 

  • पुलिस ने उन अपराधिक तत्वों के खिलाफ FIR दर्ज की लेकिन बाबरी मस्जिद पर अदालत के आदेश पर ताला डाल दिया गया |
  • अदालत ने दूसरा आदेश ये दिया कि मुसलमान बाबरी मस्जिद से 200 गज़ की दूरी बनाये रखें |
  • मूर्तियाँ रखने को सुप्रीम कोर्ट ने भी ग़ैर क़ानूनी माना था |
  • अदालत ने एक आदेश और दिया कि राम लला को अकेले नहीं रखा जा सकता और उस की पूजा अर्चना होना ज़रूरी है इसलिए एक पुजारी वहां लाया गया जो 1949 से 1986 तक हर रोज़ मस्जिद में घुस कर मूर्तियों की पूजा किया करता था |
  • बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक़ का केस हाई कोर्ट में चल रहा था कि 1986 में किसी ने बाबरी मस्जिद का दरवाज़ा खोलने और मस्जिद को पूजा के लिए सार्वजनिक तौर पर खोल देने की याचिका निचली अदालत में दाखिल की | चंद ही घंटो में अदालत ने बाबरी मस्जिद का दरवाज़ा खोल देने और पूजापाठ की आम अनुमति का आदेश जारी कर दिया !

बाबरी मस्जिद का तोड़ा जाना 

  • 1989 में भाजपा (BJP), विश्व हिन्दू परिषद् (VHP), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS), बजरंग दल और शिव सेना जैसे संगठनों ने बड़े पैमाने पर देश में रथ यात्राएँ शुरू कर दीं जिसका कांग्रेस ने ख़ामोशी से समर्थन किया और पूरे देश में सांप्रदायिक उन्माद का ज़हर घोल दिया गया |
  • 6 दिसंबर 1992 को अदालत से प्रतीकात्मक कारसेवा की अनुमति लेकर संघी दंगाईयों ने 450 साल पुरानी मस्जिद को शहीद कर दिया |
  • ये हिंदुस्तान के इतिहास का सबसे काला दिन था जब सरकार, फ़ौज, पुलिस, अदालत, प्रशासन, राजनीतिक पार्टियाँ, सब के सब चुपचाप देखती रहीं और मुसलमानों के सामने अल्लाह का घर गिरा दिया गया |

बाबरी मस्जिद पर अदालत का फैसला 

  • 7 दिसंबर 1992 को सुप्रीम कोर्ट ने हालात को ज्यों का त्यों बनाये रखने का आदेश जारी कर दिया | उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को एक दिन की सजा हुई और इस तरह मामले को ख़त्म कर दिया गया |
  • 1992 से 1993 तक सारे हिंदुस्तान में खून की होली खेली गई और पूरे देश में हत्या और लूटमार का माहौल गरम रहा |
  • क्योंकि बाबरी मस्जिद का केस “मालिकाना हक” का केस था इसलिए ये केस अलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में चलता रहा |
  • 2010 में अदालत ने फैसला सुना दिया और बाबरी मस्जिद के तीनो गुम्बदों का बंटवारा कर दिया | दाई तरफ का गुम्बद और ज़मीन निर्मोही अखाड़ा को दे दी गई | बीच के गुम्बद और ज़मीन पर राम लला का अधिकार माना गया और बाई तरफ वाले गुम्बद और ज़मीन पर मुसलमानों के मालिकाना हक़ का फैसला किया गया |
  • क्योंकि ये फैसला गलत था इसलिए मुसलमानों समेत सभी इन्साफ की मांग करने वाले संगठनों और लोगों ने इसे रदद कर दिया |
  • 2018 में आपसी सुलह के लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक कमेटी बनाई गई जिस में आपस में मतभेद रहा |
  • 2019 में 40 दिनों की लगातार सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला दिया जिस में कहा गया की मस्जिद समेत 2.77 एकड़ ज़मीन में राम लला विराजमान को दे दी जाये, सरकार 3 महीनों में ट्रस्ट बना कर मंदिर बनाना शुरू करे और मुसलमानों को 5 एकड़ ज़मीन अयोध्या में दी जाये |
  • लगभग सभी इंसाफ पसंद लोगों ने और ख़ासतौर पर मुसलमानों ने इस फैसले से समझौता नहीं किया और इसके ख़िलाफ़ अदालत में अपील दायर करने का फैसला किया | 5 एकड़ ज़मीन को रदद करते हुए उसे न लेने का फैसला किया गया |
  • 30 सितम्बर 2020 को लखनऊ की एक स्पेशल कोर्ट ने सभी आरोपियों को ये कहते हुए छोड़ दिया की इनके ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं है और बाबरी मस्जिद का गिराया जाना कोई सोची समझी साज़िश नहीं थी | 

बाबरी मस्जिद पर आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का नज़रिया 

आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस्लामी शरीयत के अनुसार कहता है कि:

  • मस्जिद की ईमारत को तोड़ना मस्जिद की पवित्रता को आहत करता है और ये इस्लाम के धार्मिक स्थल की तौहीन है
  • मस्जिद की ईमारत तोड़ दिए जाने के बाद भी वह ज़मीन जिस पर में मस्जिद की नीँव डाली गई थी, इस्लामी शरीयत के मुताबिक आज भी मस्जिद है और क़यामत तक मस्जिद रहेगी और मस्जिद की इज्ज़त से जुडी हुई शरीयत की सभी बातें उस पर आज भी लागु हैं |
  • मस्जिद की ईमारत गिरा देने से और नाजायज़ तौर पर मूर्तियों को रख देने से और ज़ुल्म और नाइंसाफ़ी के साथ मूर्तियों की पूजा शुरू करा देने से मस्जिद का मस्जिद होना ख़त्म नहीं हो जाता |
  • किसी भी मस्जिद में कितने भी अरसे तक चाहे वह अरसा कितना भी लम्बा क्यों न हो, नमाज़ का न पढ़ा जाना शरियत में मस्जिद की हैसियत को कम नहीं करता |
  • कोई मुसलमान किसी भी हाल में किसी भी मस्जिद को मूर्तीपूजा की जगह बनाने की अनुमति नहीं दे सकता |
  • अस्थायी मस्जिद पर सरकार द्वारा क़ब्ज़ा किया जाना ज़ुल्म है और इस्लामी शरीयत के अनुसार पूरी तरह ग़लत है | यह हिंदुस्तान के संविधान द्वारा दी गई धार्मिक स्वतंत्रता के विरुद्ध भी है |
  • सरकार द्वारा अगर बाबरी मस्जिद के बदले में अगर कहीं और मस्जिद बनाई जाएगी तो वह इस्लामी शरीयत के अनुसार मस्जिद नहीं होगी |
  • ऐसी मस्जिद बनाने के लिए अगर ट्रस्ट का गठन किया जायगा तो कोई मुसलमान उसमे शामिल नहीं हो सकता |
  • कई ऐतिहासिक और क़ानूनी गवाहों से ये बात साबित है की बाबरी मस्जिद असलियत में मस्जिद ही है और इस सच्चाई को उत्तर प्रदेश की सरकार ने भी अदालत में लिखित बयान में स्वीकार किया है |
  • सच्चाई ये है की बाबरी मस्जिद किसी क़ब्ज़ा की हुई ज़मीन या किसी मंदिर को तोड़ कर नहीं बनाई गई है और इस्लामी शरियत के अनुसार ये मस्जिद थी, मस्जिद है और मस्जिद ही रहेगी |  

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