हज़रत मुहम्मद का बचपन | हज़रत मुहम्मद का इतिहास | हज़रत मुहम्मद की जीवनी

हज़रत मुहम्मद का बचपन 

हज़रत मुहम्मद को उनकी पैदाईश के बाद सबसे पहले उनकी माँ आमिना ने दूध पिलाया। दो तीन दिन के बाद उनके चाचा अबू लहब की एक दासी सुवैबा ने आपको दूध पिलाया।

अरब में इस ज़मानें मे यह रिवाज था कि वहां के शरीफ घरानों के बच्चे देहात में परवरिश पाते थे। देहात से औरतें आती थीं और शरीफों के बच्चों को पालने और दूध पिलाने के लिए अपने साथ अपने घर को ले जातीं।

उन्हीं औरतों में से एक जिनका नाम “हलीमा” था और जो हवाजिन के कबीले सअद के खानदान से थीं, मक्का आईं और आपकी परवरिश के लिए अपने कबीले ले गईं। 6 साल की उम्र तक आप हवाजिन के कबीले में दाई हलीमा के पास परवरिश पाते रहे।

हज़रत मुहम्मद की अपनी माँ आमिना के पास वापसी

जब हज़रत मुहम्मद 6 साल के हो गए तो आपको आपकी माँ हज़रत आमिना ने आपको अपने पास रख लिया। इससे पहले हम पढ़ चुके हैं कि आपकी परदादी मदीना की रहने वाली और नज्जार के खानदान से थीं।

एक बार हज़रत आमिना आप को लेकर किसी वजह से मदीना आईं और नज्जार के खानदान में एक महीना तक रहीं।

हज़रत मुहम्मद की माँ आमिना की वफात (देहान्त)

हज़रत आमिना जब एक महीने के बाद यहाँ से वापस हुईं तो कुछ दूर रास्ते में चलकर बीमार हो गईं और  “अबवा” नामक स्थान पर पहुँच कर वफात पा गईं और यही दफन हुई।

कैसा अफसोस भरा मौका था, सफर की हालत थी, साथ में न कोई दोस्त था न मददगार, न कोई बहलाने वाला न कोई ग़म का बाँटने वाला। बाप का साया हज़रत मुहम्मद के सर से पैदाईश से पहले ही उठ गया था। एक माँ थी वह भी अब वह इस दुनिया से चल बसी |

हज़रत आमिना के साथ उनकी वफादार दासी उम्मे ऐमन थी वह मुहम्मद को अपने साथ लेकर मक्का आ गईं।

मुहम्मद दादा अब्दुल मुत्तलिब की परवरिश में

उम्मे ऐमन ने मक्का आकर मुहम्मद (सल्ल०) को आप के  दादा अब्दुल मुत्तलिब के हवाले किया।

दादा ने अपने बिन माँ बाप के यतीम पोते को सीने लगाया। बड़ी मुहब्बत और प्यार से आपकी परवरिश शुरु की, मुहब्बत के वजह से हमेशा वह आप को अपने साथ रखते थे। हर तरह से आपका ख्याल रखते थे।

अब्दुल मुत्तलिब की वफात (देहान्त)

अब्दुल मुत्तलिब अब बहुत बूढ़े हो चुके थे, बयासी बरस की उम्र थी, उन्हें रह-रह कर अपने यतीम पोते का ख्याल आता था। आखिर उनको अपने सबसे होनहार बेटे अबू तालिब के हवाले कर वफात पाई और मक्का के कब्रस्तान मे जिसका नाम हजून है दफ़्न हुए।

मुहम्मद चाचा अबू तालिब की परवरिश में

चचा ने अपने भतीजे को बड़े लाड़ प्यार से पाला। अपने बच्चों से बढ़कर उनके आराम का ख्याल करते, उनकी दिलजोई करते।

अबू तालिब व्यापारी थे, एक बार की बात है, वह तिजारत (व्यापार) का सामान लेकर सीरिया जा रहे थे कि हज़रत मुहम्मद ने भी साथ चलने की ख्वाहिश की, चचा अपने इकलौते भतीजे की ख्वाहिश को मना न कर सके, और साथ ले चले, फिर किसी वजह से रास्ते ही से वापस कर दिया।

जब आप (सल्ल०) की उम्र 12 साल की हुई तो आप अरब के बच्चों के तरीके मुताबिक़ बकरियां चराने लगे।

अरब में उस वक़्त लिखने पढ़ने का रिवाज न था इसी लिए आपको भी लिखना पढ़ना नही सिखाया गया। लेकिन आप अपने चाचा के साथ मिलकर कामों का तजुर्बा सीखते थे। धीरे-धीरे आप जवानी की उम्र को पहुँच गए।

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