काबे की तअमीर (नव निर्माण)
मक्का शहर ऐसी जगह बसा है जिसके चारों ओर पहाड़ियाँ हैं उन्हीं के बीच काबा बना हुआ है। जब जोर की बारिश होती थी पहाड़ियों से पानी बह कर घुस जाता था।
काबे की दीवारें नीचीं थीं और उस पर छत भी न थी। इसलिए बहुत बार ऐसा होता कि सैलाब (बाढ़) से काबे की इमारत को नुकसान पहुँच जाता। यह देख कर मक्का वालों की राय हुई कि काबे की इमारत फिर से ऊँची और मज़बूत करके बनाई जाए।
इत्तिफाक (संयोग) से ऐसा हुआ कि मक्का के बन्दरगाह पर, जिस का नाम जदूदा था व्यापारियों का एक का जहाज़ आकर टूट गया था। कुरैश को खबर लगी तो उन्होंने कुछ लोगों को भेजकर जहाज़ के तख्ते खरीद लिए।
अब क़ुरैश के सब खानदानों ने मिलकर काबा को बनाने का काम शुरू किया।
काबे में लगा काला पत्थर (हजरे अस्वद)
काबे की पुरानी दीवार में एक काला पत्थर लगा था और अब भी लगा है। उस को अब भी काला पत्थर ही कहते हैं। उसका नाग अरबी में हजरे अस्वद है।
यह पत्थर अरबों में बड़ा मुतर्बरक (पवित्र) समझा जाता था और इस्लाम मे भी इसको मुतर्बरक समझा जाता है। काबे के चारों तरफ फेरे लगाते वक्त हर फेरा उसी के पास से शुरु किया जाता है।
हज़रत मुहम्मद की वजह से बड़ी लड़ाई का रुकना
जब क़ुरैश ने इस बार दीवार को वहाँ तक ऊँचा कर लिया जहाँ पर यह पत्थर लगा था तो हर खानदान ने यही चाहा कि इस मुकद्दस (पविन्न) पत्थर को हम ही अकेले वहाँ उसकी जगह पर रखें।
मामला यहाँ तक पहुँच गया कि तलवारें खिंच गईं। झगड़ा किसी तरह तय न हुआ तो क़ुरैश के सबसे बूढ़े आदमी ने यह राय दी कि कल सुबह जो आदमी सबसे पहले काबे में आए वही अपनी राय से इस झगड़े का फैसला कर दे, और उसका जो फैसला हो उस को सब लोग दिल से मान लें। सबने इस राय को पसन्द किया।
अब अल्लाह का करना देखो कि सुबह सवेरे जो आदमी सबसे पहले काबे में पहुँचा वह हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) थे, सब लोग आप को देख कर खुश हो गए।
आप (सल्ल०) ने यह किया कि एक चादर मंगवाकर उसमें पत्थर को रखा और हर कबीले के सरदार से कहा कि वह इस चादर के एक कोने को थाम ले और ऊपर को उठाए।
जब पत्थर चादर के साथ अपनी जगह पर आ गया तो आप (सल्ल०) ने अपने मुबारक हाथों से उसको उठाकर उसकी जगह पर रख दिया और इस तरह आपस की यह बड़ी लड़ाई अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) की तदबीर (उपाय) से रुक गई।