हज़रत मुहम्मद को अल्लाह का सबसे पहला सन्देश | हज़रत मुहम्मद की जीवनी

पैग़म्बर बनने से पहले हज़रत मुहम्मद की आदतें

हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) को चालीस साल की उम्र में अल्लाह ने रसूल बनाया। इससे पहले आपको अकेले रहना बहुत पसन्द था। कई-कई दिन का खाना ले लेते और मक्के के करीब पहाड़ के एक गुफा में जिसका नाम “हिरा” था चले जाते और अल्लाह की बातों पर गौर (विचार) करते ।

दुनिया की गुमराही (पथ-भ्रष्टता) और अरब के लोगो की यह हालत देखकर आप (सल्ल०) का दिल दुखता था ।

हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) उस गुफा मे दिन रात खुदा की इबादत (पूजा) और सोच मे पड़े रहते थे।

हज़रत मुहम्मद को अल्लाह का पहला सन्देश 

एक दिन ऐसा हुआ कि अल्लाह का वह फरिश्ता जो अल्लाह का कलाम (वाणी) और सन्देश लेकर रसूलों के पास आता है और जिसका नाम जिब्रईल है नज़र आया।

इस फरिश्ते ने खुदा का भेजा हुआ सबसे पहला सन्देश जिसे अरबी में “वही” कहते हैं मुहम्मद रसूलुल्लाह (सल्ल०) को सुनाया। खुदा की भेजी पहली “वही” यह थी।

“अपने उस खुदा का नाम पढ़ जिसने काइनात (ब्रहमाण्ड) को पैदा किया। जिसने इंसान को जमे हुए खून से बनाया। पढ़ तेरा खुदा बड़ा ही करीम (दाता) है। जिसने कलम के द्वारा इल्म को सिखाया। इन्सान को वह बताया जो वह नहीं जानता था।”

यह अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) पर पहली “वही” आई। अल्लाह के इस सन्देश का आना था कि रसूल (सल्ल०) पर लोगों को समझाने का बोझ डाल दिया गया।

नाममझों को बताना, अन्जानों को सिखाना, अन्धेरे में चलने वाले को रोशनी दिखाना और बुतों-मूर्तियों के पुजारियों को अल्लाह के पविन्न नाम से जनवाना, आप (सल्ल०) का काम ठहराया गया।

अल्लाह के सन्देश पर हज़रत मुहम्मद का डर और खौफ   

आप (सल्ल०) का दिल इस बोझ के डर से कांप गया। इसी हालत मे आप (सल्ल०) घर वापस आए और अपनी बीवी ख़दीजा से पूरी बात बताई।

हज़रत खदीजा (रजि०) ने आप (सल्ल०) को तसल्ली दी और कहा आप (सल्ल०) गरीबों पर रहम करते है, और मजबूरों की मदद करते हैं, और जो लोग कर्जों के बोझ के नीचे दबे हैं, आप उनका बोझ हल्का करते हैं, अल्लाह तआला ऐसे आदमी को ऐसे अकेला न छोड़ेगा।

अल्लाह के पैग़म्बरों के साथ लोगों का बुरा सुलूक

फिर खदीजा हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) को अपने चचेरे भाई वरकः बिन नौफल के पास ले गईं। वरकः ईसाई हो गये थे और इब्रानी भाषा जानते थे और हजरत ईसा (अलै०) की किताब “इन्जील” पढ़े हुऐ थे।

उन्होंने खुदा के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) से सारा माजरा (कथा) सुना तो कहा यह वही खुदा का फरिश्ता है जो हज़रत मूसा (अलै०) पर उतरा था ।

फिर वरकः ने कहा “ऐ काश! मैं उस वक्‍त ताकतवर व तन्दुरुस्त होता जब तुम्हारी कौम तुम्हें तुम्हारे घर से निकालेगी।”

आप (सल्ल०) ने पूछा क्या ऐसा होगा?

वरकः ने कहा- जो काम लेकर आप (सल्ल०) आए हैं उसको लेकर आप से पहले जो भी आया उसकी कौम ने उसके साथ यही किया है।

इत्तिफाक यह कि उसके कुछ दिन बाद ही वरकः की मौत हो गई।

अभी हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) ने अल्लाह का यह काम शुरु ही किया था कि अल्लाह का यह हुक्म आया-

“ऐ! चादर मे लिपटे हुऐ खड़ा हो जा, फिर डर सुना, और अपने रब (पालनहार) की बड़ाई बोल, और अपने कपड़े पाक रख, और गन्दगी को छोड़ दे।”

अल्लाह के इस सन्देश के बाद आप (सल्ल०) के लिये ज़रूरी हो गया कि अल्लाह पर भरोसा करके खड़े हो जाएँ और लोगों को अल्लाह की बात सुनाएँ। अल्लाह (पालनहार) की बड़ाई बोलें और नापाकी व गन्दगी की बातों से बचें और बचाएँ।

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