हज़रत मुहम्मद की ख़दीजा से शादी और मूर्ति पूजा से बचना | मुहम्मद साहब की जीवनी

मुहम्मद साहब के साथ हज़रत ख़दीजा का व्यापार

अरब में व्यापार का एक और नियम था कि अमीर लोग जिनके पास दौलत थी वह रुपया देते थे, और दूसरे मेहनती लोग जो व्यापार करना जानते थे रुपये को लेकर व्यापार (तिजारत) में लगाते थे, और उससे जो फ़ायदा होता उसको दोनों आपस में बांट लेते थे। हज़रत (सल्ल०) ने भी इस तरीके पर व्यापार का काम शुरु किया था।

कुरैश में ख़दीजा नाम की एक दौलतमन्द औरत थी। उनके पहले शौहर (पति) मर गये थे और अब वह बेवा (विधवा) थीं और वह अपना सामान दूसरों को देकर व्यापार के लिए इधर-उधर भेजा करती थीं।

उन्होंने हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) की ईमानदारी और सच्चाई की तारीफ सुनी तो आप (सल्ल०) को बुलवाकर कहा कि आप मेरा सामान लेकर व्यापार कीजिए । उसमें जितना नफा (profit) दूसरों को देती हूँ उससे ज्यादा आप को दूँगी।

हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) राजी हो गये और उनका सामान लेकर सीरिया गये। हज़रत खदीजा ने अपने गुलाम मैसरा को भी आप के साथ कर दिया। इस व्यापार मे बहुत फायदा हुआ वापस आये तो हज़रत खदीजा आपके काम से बहुत खुश हुईं।

मुहम्मद साहब का हज़रत ख़दीजा से निकाह

इस सफर से वापस आए तीन महीने गुज़रे थे कि हज़रत खदीजा ने आपके पास निकाह का पैगाम (सन्देश) भेजा।

उस वक़्त मुहम्मद (सल्ल०) की उम्र 25 वर्ष की थी । फिर भी आप ने खुशी से इस पैगाम को कबूल (स्वीकार) कर लिया और थोड़े दिनों के बाद बहुत ही सादगी के साथ यह शादी हो गई।

आपके चाचा अबू तालिब और हम्ज: और खानदान के दूसरे बड़े लोग दुल्हन के घर पर गये, अबू तालिब ने निकाह का खुत्बा पढ़ा और पाँच सौ दिरहम महर तय पाया ।

अब दोनो मियॉ-बीवी हंसी खुशी रहने लगे। व्यापार उसी तरह चलता रहा और हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) बहुत से शहरों मे आते जाते रहे और आप की नैकी, सच्चाई और अच्छे अख्लाक (व्यवहार) का हर तरफ चर्चा था।

हज़रत मुहम्मद का मूर्ति पूजा और बुराई की बातों से बचना

हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) दुनिया मे इसलिए पैदा किए गए थे कि वह अल्लाह के बन्दों को अल्लाह का पैग़ाम (सन्देश) सुनायें, उनको बुराई की बातों से बचाएँ, अच्छी और नेक बातें बताएँ । तो जिसके पैदा करने का अल्लाह तआला का मकसद (उद्देश्य) यह हो तो यह बात ज़ाहिर है कि अल्लाह तआला ने उसको कितनी अच्छी बातें दी होंगी और उसकी आदतें कितनी अच्छी बनाई होंगी ।

हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) बचपन ही से बहुत नेक, अच्छे और हर बुराई से दूर थे । बचपन में बच्चों की तरह के झूठे और बेकार के खेल कूद से बचे रहे।

जब कभी कोई मामूली बात भी ऐसी होती जो नबी रसूल और अल्लाह के संदेष्टा के लायक न होती तो अल्लाह तआला आप को उससे साफ बचा लेता।

बचपन का किस्सा है कि काबे की दीवार सही हो रही थी। बच्चे अपनी-अपनी लुंगी उतार कर कन्धों पर रख कर पत्थर लादते थे। आप (सल्ल०) ने भी ऐसा करना चाहा तो शर्म के मारे बेहोश होकर गिर पड़े।

ऐसे ही एक बार शुरु जवानी में एक जगह बेतकल्लुफ दोस्तों की बैठक थी जिसमे लोग बेकार के किस्से कहानियों में रात गुजारते। आप (सल्ल०) ने उनके साथ वहाँ जाना चाहा- लेकिन आप (सल्ल०) को रास्ते में ऐसी नींद आ गई कि सुबह ही जाकर आँख खुली।

क़ुरैश के सभी लोग अपने दादा हज़रत इब्राहीम (अलै०) का दीन भुला चुके थे और अल्लाह को छोड़ कर मिट्टी और पत्थर की शक्लें बना कर उन मूर्तियों को पूजते थे। कुछ लोग सूरज और दूसरे सितारों की पूजा करते थे, मगर हुजूर (सल्ल०) जब से समझदार हुए इन बातों से बराबर बचते रहे।

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