अल्लाह ने हज़रत मुहम्मद को कब पैग़म्बर बनाया ?
अब हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) चालीस साल की उम्र को पहुँच चुके थे। यह वह वक्त होता है जब आदमी की समझ बूझ और अक्ल पुख्ता (Mature) हो जाती है।
इस उम्र तक पहुँचते-पहुँचते इंसान की जवानी की शुरुआत की ख्वाहिशें (इच्छा) मर चुकी होती हैं। उसे दुनिया का अच्छा बुरा काफी तजुर्बा हो चुका होता है। यही उम्र इसके लायक है कि अल्लाह तआला उसको अपना रसूल और पैग़म्बर बनाए और जाहिलों के सिखाने और नादानों के बताने के लिए उसको उनका उस्ताद बनाये।
अल्लाह के पैग़म्बर क्या करते हैं ?
अल्लाह अपने रसूलों को फरिशतों के जरिये अपनी बातों को बताता है और अपनी बात उनको सुनाता है। वह रसूल फरिश्तों से अल्लाह का कलाम (वाणी) सुन कर अल्लाह के बन्दों को वही सुनाते हैं।
अल्लाह की बात मानने वालों अच्छा अन्जाम
अल्लाह के जो नेक बन्दे रसूल के मुँह से अल्लाह का कलाम सुनकर अल्लाह की बात मानते हैं और उसके हुक्म (आदेश) पर चलते हैं वह मुसलमान कहलाते हैं।
अल्लाह उनसे खुश होता है, प्यार करता है, और जब तक वह जिंदा रहते हैं अल्लाह तआला का उन पर हर तरह का इनाम होता है, और उन पर अपनी बरकत उतारता है।
और जब ऐसे लोग मर जाते है और कियामत के बाद जब फिर सब लोग जीकर उठेंगे तो नेक लोगों को अल्लाह हर तरह की खुशी देगा। वहां बादशाहों से बढ़कर आराम व चैन जहाँ मिलेगा और उसे जन्नत कहते हैं।
अल्लाह की बात का इंकार करने वालों का बुरा अन्जाम
दूसरी तरफ वह लोग अल्लाह के रसूल की बात को नहीं मानते और खुदा के कलाम (बात) को नहीं सुनते और उसके हुक्मों पर नहीं चलते वह इस दुनिया मे भी दिल का चैन और रुह (आत्मा) का आराम नहीं पाते।
और ऐसे लोगों से मरने के बाद खुदा भी उनसे खुश नहीं होगा और कियामत के बाद वह ऐसा दुख, दर्द और सजा पाएँगे कि वैसी तकलीफ कभी नहीं उठाई होगी और वह जगह उनको जहाँ यह सज़ा मिलेगी वह दोजख (नर्क) है जिसको जहन्नम भी कहते हैं।
अल्लाह ने जन्नत और जहन्नम क्यों बनाई?
सोचने की बात यह है कि जिस अल्लाह ने इस दुनिया में अपने तमाम बन्दों के लिए जमीन व आसमान बनाया। तरह-तरह के अनाज, मेवे और फल पैदा किये, पहनने के लिए रंग-बिरंगे कपड़े बनाये, जमीन मे तरह-तरह की सब्जी और फल उगाये, जिसने इन्सान के थोड़े दिनों के आराम के लिए यह कुछ बनाया, क्या उसने अपने नेक बन्दों के हमेशा के आराम का सामान न किया होगा ?
इंसानों का क़ानून और अल्लाह का क़ानून
जिस तरह इंसानों ने इस दुनिया के कायदे-कानून बनाने, सिखाने और लिखाने के लिए अध्यापक, डाक्टर, साइंटिस्ट और वकील बनाये हैं, उसी तरह अल्लाह ने इस दुनिया के नियम और कानून बनाने के लिए रसूल और पैगम्बर बनाये हैं ।
जिस तरह इस दुनिया में उस्तादों और डॉक्टरों का कहना अगर हम न मानें तो हमको दुनिया मे अपनी नासमझी और जिहालत से बड़ी तकलीफे उठानीं पड़ती हैं उसी तरह अगर हम अपनी नादानी और जिहालत से रसूलों का कहना न मानें तो मरने के बाद उस दुनिया मे हम बड़ी तकलीफ उठाएँगे।
इंसानों पर अल्लाह का बहुत बड़ा एहसान
इंसान पर अल्लाह के सारे एहसानों में सबसे बड़ा एहसान यह है कि उसने उसे अपनी बातों को समझाने और नेकी का रास्ता दिखाने के लिए अपने बहुत सारे रसूल भेजे हैं ।
हज़रत आदम (अलै०) के वक़्त से लेकर हजरत ईसा (अलै०) तक हर जमाने में और हर कौम में अल्लाह के यह रसूल (सन्देष्टा) आते रहे हैं।
हज़रत मुहम्मद अल्लाह के आखिरी पैग़म्बर हैं
अल्लाह ने सारे पैग़म्बरों के बाद सबसे बड़े पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) को भेजा। अब आपके बाद कियामत तक फिर कोई दूसरा रसूल नहीं आने वाला क्योंकि खुदा की बात पूरी हो चुकी और खुदा का सन्देश हर जगह पहुँच चुका है।