इस्लाम क्या है? | Islam kya hai? | What is Islam in Hindi

इस्लाम का मतलब है कि इंसान अपने आप को बिना शर्त अपने पैदा करने वाले और पालने वाले अल्लाह के सामने सुपुर्द कर दे, उसके सामने अपना सर झुका दे और उसके हुक्म और आदेश का पालन करे। इस्लाम धर्म इंसान की पूरी ज़िन्दगी को अपने घेरे में लिए हुए है ।

यह एक ऐसा  बुनियादी सच है जो बन्दे व रब (भक्त और ईश्वर) के सम्बन्ध को समझे बिना समझ में नहीं आ सकता।

हर मुसलमान अल्लाह का आज्ञाकारी बन्दा है, और उसका सम्बन्ध अल्लाह से स्थायी है, आम है, गहरा भी है और व्यापक भी, सीमित और भरपूर भी।

इस्लाम में सब कुछ अल्लाह का है 

इस्लाम में इस तरह का रिजर्वेशन या आरक्षण नहीं है कि इतना आप का है और इतना हमारा, इतना देश का, इतना स्टेट का, इतना रब का और इतना ख़ानदान और कबीले का, इतना दीन धर्म का और इतना राजनीतिक लाभ का |

इस्लाम में जो कुछ है वह सब अल्लाह का है । इस्लाम में सब इबादत ही इबादत है।

एक मुसलमान की पूरी ज़िन्दगी खुदा के सामने मुहताजी और दासता है।

इस्लाम धर्म का दायरा पूरी ज़िन्दगी पर हावी है, और इसमें किसी को कोई बदलाव करने का कोई हक नहीं। बड़े बड़े इस्लामी विद्वानों और नेताओं को भी इस्लाम की किसी बात को बदलने का कोई हक नहीं है

अल्लाह आधा अधूरा नहीं पूरा इस्लाम चाहता है  

अल्लाह तआला मुसलमानों से यह मांग करता है, कि वह पूरे के पूरे इस्लाम में दाखिल हो जायें ।

अल्लाह तआला क़ुरआन मजीद में कहते हैं –

“ऐ ईमान वालो, इस्लाम में पूरे दाखिल हो जाओ और शैतान के पीछे न चलो, वह तो तुम्हारा खुला दुश्मन है।” ( क़ुरआन  : अलबकर: 208)

अल्लाह के आखिरी रसूल हज़रत मुहम्मद ने जिन मुसलमानों को तैयार किया था वह सहाबा थे, वह दीन के पूरी अनुयायी थे, वह दीन के सांचे मे ढल गये थे, उनके अकाइद (विश्वास) उनकी इबादत, उनके मुआमले, उनका आचरण उनकी रस्में, उनके आयोजन, उनकी विजय, उनकी हुकूमत व शासन व्यवस्था सब चीजें और जीवन के सब विभाग शरीअत के अनुसार थे।

अल्लाह (परमेश्वर) के प्रत्येक आज्ञाकारी भक्त को इन तमाम बातों का ख्याल रचाना चाहिए। इसका सर्वोत्कृष्ट नमूना मुहम्मद सल्‍ल0 का उत्कृष्ट गुणों से परिपूर्ण व्यक्तित्व था, और फिर सहाबा की जिन्दगी थी । अल्लाह के हर मानने वाले को वैसी ही जिन्दगी गुज़ारने की कोशिश करनी चाहिए।

इस्लाम में अकीदे (विश्वास) का महत्व

भक्ति और बन्दगी की बुनियाद अकीदा (विश्वास) और ईमान के सही होने पर है। जिसके अकीदे में ख़लल, विश्वास में विकार और ईमान में बिगाड़ हो उसकी न कोई पूजापाठ स्वीकार की जाएगी न उसका कोई कर्म सही माना जायेगा

जिसका अकीदा दुरूस्त और ईमान सही हो उसका थोड़ा अमल (कर्म) भी बहुत है।

इसलिए सबसे पहले उन बातों को मालूम करने की ज़रूरत है जिन पर विश्वास रखना, ईमान लाना और उस के अनुसार आचरण करना आवश्यक है और जिन पर विश्वास के बिना कोई व्यक्ति मुसलमान कहलाने का अधिकारी नहीं होगा |

यह वह शर्त है जो तमाम दुनिया के मुसलमानों के लिए एक समान है।

इस्लाम में शिर्क क्या है ?

अल्लाह के अलावा दूसरों की पूजा करना, उनके आगे माथा टेकना, उनसे दुआ और ऐसी चीज़ों में मदद मांगना जो मानव शक्ति से परे और केवल अल्लाह की कुदरत (सामर्थ्य) से सम्बन्ध रखती हैं (जैसे संतान देना, क़िस्मत अच्छी बुरी करना, हर जगह मदद के लिए पहुंच जाना, दिल की बातों और छुपी हुई बातों को जान लेना), इस्लाम में यह शिर्क है, और सब से बड़ा पाप है जो अल्लाह से माफ़ी मांगे बिना क्षमा नहीं होता।

इस्लाम के आधारभूत अक़ीदे (विश्वास)

तौहीद (ईश्वर के एक और सिर्फ एक होने का विश्वास) इस्लाम का शुद्ध और बेजोड़ विश्वास है। इसके अन्तर्गत भक्त और ईश्वर के बीच दुआ, इबादत या पूजा के लिए किसी बिचौलिये की ज़रूरत नहीं है।

  • तौहीद के इस अकीदे में न अनेक और बहुसंख्य देवताओं भगवानों की पूजा की की गुंजाइश है और न ही ईश्वर के अवतार अथवा छाया की परिकल्पना की और न हीं अल्लाह के किसी प्राणी में घुल मिल जाने और दोनों को मिलकर एक हो जाने के विश्वास की कोई गुंजाइश है।
  • इस्लाम यह कहता है की एक अल्लाह है  जिसे किसी की ज़रुरत नहीं और जो किसी का मुहताज नहीं है, पूरे संसार में उसी की हुकूमत है और उसी का हुक्म चलता है।
  • अल्लाह का न कोई बाप है न बेटा और न खुदाई में कोई उसका शरीक व साथी है।
  • इसी प्रकार सृष्टि की रचना, पैदाईश, संसार की व्यवस्था व संचालन, जमीन व आसमान का प्रभुत्व उसी के हाथ में है।
  • यानि इस पूरी सृष्टि का बनाने वाला एक अकेला अल्लाह है जो हमेशा से है और हमेशा रहेगा
  • वह सर्वगुण सम्पन्न है और हर प्रकार के अवगुण व कमज़ोरियों से अछूता है। वह समस्त संसार की एक एक चीज़ को जानता है।
  • यह पूरी सृष्टि (Universe) उसी के इरादे से है। वह जिन्दा है, सुनने वाला, देखने वाला है, न कोई उसकी तरह है, न उसका कोई मुकाबला और बराबरी कर सकता है।
  • वह बेमिसाल (अद्वितीय) है, किसी मदद का मुहताज नहीं, सृष्टि के चलाने और उसकी व्यवस्था करने में उसका कोई शरीक, साथी और मददगार नहीं।
  • इबादत किये जाने का हक उसी का  है, सिर्फ वही है जो रोगी को रोग से मुक्ति देता है, प्राणी को रोज़ी देता है और उनकी तकलीफों को दूर करता है।
  • अल्लाह न किसी के शरीर में उतरता है, न किसी का रूप धारण करता है न उसका कोई अवतार है और न वह किसी जगह अथवा दिशा में सीमित है।
  • अल्लाह जो चाहता है सो होता है और वह जो नहीं चाहता नहीं होता। 
  • वह ग़नी (सर्वसम्पन्न) और बेनियाज़ (जो किसी का मुहताज न हो) है। 
  • उस पर किसी का हुक्म नहीं चलता, उससे पूछा नहीं जा सकता कि वह क्या कर रहा हैं? उसके अलावा कोई (वास्तविक) शासक नहीं है।
  • तकदीर अच्छी हो या बुरी अल्लाह की तरफ से है ।
  • अल्लाह भविष्य में होने वाली चीज़ों को होने से पहले जानता और उन को अस्तित्व में लाता है।
  • उसके प्रतिष्ठा प्राप्त फरिश्ते (देवदूत) हैं और उसी की बनाये हुए जिन्‍नात भी हैं।
  • कुरआन अल्लाह की वाणी है। उसके शब्द अल्लाह की तरफ से हैं, वह परिपूर्ण हैं, उसमें न कोई चीज़ कम हुई है और न कोई ज्यादती हुई है और न हो सकती है, वह हर कमीबेशी और तबदीली से सुरक्षित है।
  • जो व्यक्ति क़ुरआन में कमी, ज़ियादती अथवा बदलाव  का कायल हो वह मुसलमान नहीं।
  • मुर्दों को अपने शरीर के साथ मरने के बाद ज़िन्दा होना निश्चित है, जज़ा (कर्मो का बदला) व सजा और हिसाब निश्चित है|
  • जन्नत और दोज़ख निश्चित है।
  • पैगम्बरों का अल्लाह की तरफ से दुनिया में आना निश्चित है, यकीनी है और उनकी जबानी और उनके माध्यम से खुदा का अपने बन्दों का हुक्म करना और शिक्षा देना निश्चित है, और सच है।
  • मोहम्मद सल्‍ल0 खुदा के अन्तिम पैगम्बर हैं और आप के बाद कोई नबी नहीं आएगा।
  • मोहम्मद सल्‍ल0 का आह्नान, सन्देश और पैगम्बरी सारी दुनिया के लिए है।
  • इस विशिष्टता में और इस जैसी दूसरी विशेषताओं मे वह सब नबियों मे अफजल व उत्कृष्ट है।
  • अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्‍ल0 की रिसालत और पैगम्बरी पर ईमान लाये बिना ईमान विश्वसनीय नहीं ।
  • इस्लाम के अलावा कोई और धर्म सच्चा नहीं, इस्लाम ही अकेला सच्चा धर्म है।
  • शरीअत के आदेशों से बड़े से बड़ा ऋषि-मुनि और परहेज़गार व इबादतगुज़ार लोगों को भी छूट नहीं है।
  • हजरत अबूबक्र सिद्दीक्‌ मोहम्मद सल्‍ल0 के बाद इमाम और सच्चे खलीफा थे, फिर हज़रत उमर (रजि.), फिर हज़रत उस्मान गनी (रजि.), फिर हज़रत अली (रज़ि.) सच्चे ख़लीफा हैं।
  • सहाबा मुसलमानों के धार्मिक नेता और पथ प्रदर्शक हैं, उनको बुरा भला कहना हराम है और उनका मान सम्मान वाजिब व अनिवार्य है।

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